18-12-91  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

हर कर्म में ऑनेस्टी का प्रयोग करना ही तपस्या है

अव्यक्त बापदादा अपने ऑनेस्ट बच्चों प्रति बोले :

आज बापदादा चारों ओर के सर्व तपस्वी कुमार और तपस्वी कुमारियों में तपस्या की विशेष निशानी देख रहे हैं। तपस्वी आत्मा की विशेषतायें पहले भी सुनाई है। आज और विशेषता सुना रहे हैं। तपस्वी आत्मा अर्थात् सदा ऑनेस्ट आत्मा। ऑनेस्टी ही तपस्वी की विशेषता है। ऑनेस्ट आत्मा अर्थात् हर कर्म में, श्रीमत में चलने में ऑनेस्ट होगी। ऑनेस्ट अर्थात् वफादार और इमानदार। श्रीमत पर चलने के ऑनेस्ट अर्थात् वफादार। ऑनेस्ट आत्मा स्वत: ही हर कदम श्रीमत के इशारे प्रमाण उठाती है। उनका हर कदम आटोमेटिक श्रीमत के इशारे पर ही चलता है। जैसे साइन्स की शक्ति द्वारा कई चीजें इशारे से आटोमेटिक चलती हैं, चलाना नहीं पड़ता , चाहे लाइट द्वारा, चाहे वायब्रेशन द्वारा स्विच ऑन किया और चलता रहता है। लेकिन साइन्स की शक्ति विनाशी होने के कारण अल्पकाल के लिए चलती है। अविनाशी बाप के साइलेन्स की शक्ति द्वारा इस ब्राह्मण जीवन में सदा और स्वत: ही सहज चलते रहते हैं। ब्राह्मण जन्म मिलते ही दिव्य बुद्धि में बापदादा ने श्रीमत भर दी। ऑनेस्ट आत्मा उसी श्रीमत के इशारे से नेचुरल सहज चलती रहती है। तो ऑनेस्ट की पहली निशानी - हर सेकण्ड हर कदम श्रीमत पर एक्यूरेट चलना। चलते सभी हैं लेकिन चलने में भी अनेक प्रकार की भिन्नता हो जाती है। कोई सहज और तीव्रगति से चलते हैं। क्योंकि उस आत्मा को श्रीमत स्पष्ट सदा स्मृति में रहने के कारण समर्थ है। यह है नम्बरवन ऑनेस्टी। नम्बर वन आत्मा को सोचना नहीं पड़ता कि यह श्रीमत है या नहीं, यह राइट है या रांग है, क्योंकि स्पष्ट है। दूसरी आत्माओं को स्पष्ट न होने के कारण कई बार सोचना पड़ता है। इसलिए तीव्र गति से मध्यम गति हो जाती है। साथ-साथ कोई सोचता है,  कोई थकता है। चलते सभी हैं लेकिन सोचने और थकने वाले सेकेण्ड नम्बर हो जाते हैं। थकते क्यों हैं? चलते-चलते श्रीमत के इशारों में मनमत परमत मिक्स कर देते हैं, इसलिए स्पष्ट और सीधे रास्ते से भटक टेढ़े बांके रास्ते में चले जाते हैं। रिजल्ट में फिर भी वापस लौटना ही पड़ता है। क्योंकि मंज़िल का रास्ता एक ही स्पष्ट सीधा और सहज है। सीधे को टेढ़ा बना देते हैं। तो आप सोचो टेढ़ा चलने वाला कहाँ तक चलेगा, किस स्पीड से चलेगा? और परिणाम क्या होगा? थकना और निराश होकर लौटना। इसलिए सेकेण्ड नम्बर हो जाता है। अनेक सेकेण्ड गँवाया, अनेक श्वांस गँवाया, सर्व शक्तियाँ गँवाई, इसलिए सेकेण्ड नम्बर हो गया। सिर्फ इसमें नहीं खुश हो जाना कि हम तो चल रहे हैं। लेकिन अपनी चाल और गति दोनों को चेक करो। तो समझा, ऑनेस्टी किसको कहा जाता है?

ऑनेस्ट आत्मा की और निशानी है - वह कभी किसी भी खज़ाने को वेस्ट नहीं करेगा। सिर्फ स्थूल धन वा खज़ाने की बात नहीं है लेकिन और भी अनेक खज़ाने आपको मिले हैं। ऑनेस्ट संगमयुग के समय के खज़ाने को एक सेकेण्ड भी वेस्ट नहीं करेगा। क्योंकि संगमयुग का एक सेकेण्ड, वर्ष से भी ज्यादा है। जैसे गरीब आत्मा का स्थूल धन आठ आना आठ सौ के बराबर है। क्योंकि आठ आने में सच्चे दिल की भावना आठ सौ से ज्यादा है। ऐसे संगमयुग का समय एक सेकेण्ड इतना बड़ा है। क्योंकि एक सेकेण्ड में पद्मों जितना जमा होता है। सेकेण्ड गँवाया अर्थात् पद्मों जितनी कमाई का समय गँवाया। ऐसे ही संकल्प का खज़ाना, ज्ञान धन का खज़ाना, सर्व शक्तियों, सर्व गुणों का खज़ाना वेस्ट नहीं करेंगे। अगर सर्व शक्तियों, सर्व गुणों व ज्ञान को स्व-प्रति वा सेवा-प्रति काम में नहीं लगाया तो इसको भी वेस्ट कहा जायेगा। दाता ने दिया और लेने वाले ने धारण नहीं किया, तो वेस्ट हुआ ना! जो ऑनेस्ट होता है वह सिर्फ धन को प्राप्त कर रख नहीं देता। ऑनेस्ट की निशानी है खज़ाने को बढ़ाना। बढ़ाने का साधन ही है कार्य में लगाना। अगर ज्ञान-धन को भी समय प्रमाण सर्व आत्माओं के प्रति या स्व की उन्नति के प्रति यूज़ नहीं करते हो तो खज़ाना कभी भी बढ़ेगा नहीं। ऑनेस्ट मैनेजर या डायरेक्टर उसको ही कहा जाता है जो कोई भी कार्य में प्रॉफिट करके दिखाये। प्रगति करके दिखाये। ऐसे ही संकल्प के खज़ाने को, गुणों को, शक्तियों को कार्य में लगाकर प्रॉफिट करने वाले हैं या वेस्ट करने वाले हैं? ऑनेस्ट की निशानी है - वेस्ट नहीं करना, प्रॉफिट करना। अपना तन, मन और स्थूल धन - यह तीनों ही बाप का दिया हुआ खज़ाना है। आप सबने तन, मन, धन वा वस्तु, जो भी थी वो अर्पण कर दी। संकल्प किया कि सब कुछ तेरा, ऐसा नहीं थोड़ा धन मेरा थोड़ा बाप का, थोड़ा धन किनारे रखें , जेब खर्च रखा है, थोड़ा-थोड़ा आईवेल के लिए किनारे करके रखा है। आइवेल के लिए किनारे कर रखना यह समझदारी है। जितना ही मेरा होगा उतना ही जहाँ मेरा-मेरा होता वहाँ बहुत बातें हेराफेरी होती हैं। क्योंकि उसको छिपाना पड़ता है ना! भक्ति मार्ग वाले भी समझते हैं- ये मेरे मेरे का फेरा है। इसलिए जब सब कुछ तेरा कह दिया तो कोई भी तन, मन या धन, व्ास्तु, सिर्फ धन नहीं लेकिन वस्तु भी धन है। वस्तु बनती किससे है? धन से ही बनती है ना, तो कोई भी वस्तु, कोई भी स्थूल धन, कोई भी मन से संकल्प और तन से व्यर्थ कर्म करना या व्यर्थ समय गँवाना तन द्वारा, यह भी वेस्ट में गिना जायेगा। तो ऑनेस्ट तन को भी व्यर्थ के तरफ नहीं लगाते। संकल्प को भी वेस्ट में नहीं लगाते। जहाँ भी रहते हो, चाहे प्रवृत्ति वाले हैं, चाहे सेन्टर वाले हैं, चाहे मधुबन वाले हैं, सबका तन-मन-धन बाप का है वा प्रवृत्ति वाले समझते हैं कि हम समर्पण तो है नहीं तो मेरा ही है। नहीं। यह तो बाप की अमानत है। तो ऑनेस्टी अर्थात् अमानत में कभी भी ख्यानत नहीं करें। वेस्ट करना अर्थात् अमा-नत में ख्यानत करना। ऑनेस्ट की निशानी वह अमानत में कभी भी ख्यानत कर नहीं सकता। छोटी सी वस्तु को भी वेस्ट नहीं करेगा। कई बार अपने बुद्धि के अलबेलेपन के कारण वा शरीर द्वारा कार्य में अलबेलेपन के कारण छोटी-छोटी वस्तु वेस्ट भी हो जाती है। फिर यह सोचते हैं कि मैंने यह जानबूझ कर नहीं किया, तो हो गया अर्थात् अलबेलापन। चाहे बुद्धि का हो, चाहे शरीर के मेहनत का अलबेलापन हो, दोनों प्रकार का अलबेलापन वेस्ट कर देता है। तो वेस्ट नहीं करना है। एक से दस गुना बढ़ाना है, न कि वेस्ट करना है। जिसको बापदादा सदा एक सलोगन में कहते हैं - कम खर्चा बाला नशीन। ये है बढ़ाना और वो है गँवाना। ऑनेस्ट अर्थात् तन मन और धन को सदा सफल करने वाला। यह है ऑनेस्ट आत्मा की निशानी। तो तपस्वी अर्थात् यह सब ऑनेस्टी की विशेषतायें हर कर्म में प्रयोग में आवे। ऐसे नहीं कि समाया हुआ तो सब हैं, जानते भी सब हैं। लेकिन नहीं, तपस्या, योग का अर्थ ही है प्रयोग में लाना। अगर इन विशेषताओं को प्रयोग में नहीं लाते तो प्रयोगी नहीं, तो योगी भी नहीं। यह सब खज़ाने बापदादा ने प्रयोग करने के लिए दिये हैं। और जितना प्रयोगी बनेंगे, तो प्रयोगी की निशानी है प्रगति। अगर प्रगति नहीं होती है तो प्रयोगी नहीं। कई आत्मायें ऐसे अपने अन्दर समझती भी हैं कि न आगे बढ़ रहे हैं, न पीछे हट रहे हैं। जैसे हैं, वैसे ही हैं। और कई ऐसे भी कहते हैं कि शुरू में बहुत अच्छे थे, बहुत नशा था अभी नशा कम हो गया है। तो प्रगति हुई या क्या हुआ? उड़ती कला हुई या ठहरती कला हुई तो प्रयोगी बनो। ऑनेस्टी का अर्थ ही है प्रगति करने वाला प्रयोगी। ऐसे प्रयोगी बने हो या अन्दर समाकर रखते हो- खज़ाना अन्दर ही रहे? ऐसे ऑनेस्ट हो?

जो ऑनेस्ट होता है उसके ऊपर बाप का, परिवार का स्वत: ही दिल का प्यार और विश्वास होता है। विश्वास के कारण फुल अधि-कार उसको दे देते हैं। ऑनेस्ट आत्मा को स्वत: ही बाप का वा परिवार का प्यार अनुभव होगा। बड़ों का, चाहे छोटों का, चाहे समान वालों का, विश्वासपात्र अनुभव होगा। ऐसे प्यार के पात्र वा विश्वास के पात्र कहाँ तक बने हैं? यह भी चेक करो। ऐसे चलाओ नहीं कि इसके कारण मेरे में विश्वास नहीं है,तो मैं विश्वासपात्र कैसे बनूँ, अपने को पात्र बनाओ। कई बार ऐसे कहते हैं कि मै तो अच्छा हूँ लेकिन मेरे में विश्वास नहीं है। फिर उसके कारण लम्बे चौड़े सुनाते हैं। वह तो अनेक कारण बताते भी हैं और कई कारण बनते भी हैं। लेकिन ऑनेस्टी दिल की, दिमाग की भी ऑनेस्टी चाहिए। नहीं तो दिमाग से नीचे ऊपर बहुत करते हैं। तो दिल की भी ऑनेस्टी दिमाग की भी ऑनेस्टी। अगर सब प्रकार की ऑनेस्टी है तो ऑनेस्टी अविश्वास वाले को आज नहीं तो कल विश्वास में ला ही लेगी। जैसे कहावत है सत्य की नांव डूबती नहीं है लेकिन डगमग होती है। तो विश्वास की नांव सत्यता है, ऑनेस्टी है तो डगमग होगी लेकिन अविश्वासपात्र बनना अर्थात् डूबेगी नहीं। इसलिए सत्यता की हिम्मत से विश्वासपात्र बन सकते हो। पहले सुनाया था ना कि सत्य को सिद्ध नहीं किया जाता है। सत्य स्वयं में ही सिद्ध है। सिद्ध नहीं करो लेकिन सिद्धि स्वरूप बन जाओ। तो समय के गति के प्रमाण अभी तपस्या के कदम को सहज और तीव्र गति से आगे बढ़ाओ। समझा- तपस्या वर्ष में क्या करना है? अभी भी कुछ समय तो पड़ा है। इन सब विधियों को स्वयं में धारण कर सिद्धि स्वरूप बनो। अच्छा-

सर्व ऑनेस्ट आत्माओं को, सदा सर्व खज़ानों को कार्य में लाते आगे बढ़ाने वाली आत्माओं को, सदा तन-मन-धन को यथार्थ विधि से कार्य में लगाने वाली आत्माओं को, सदा अपने को विश्वास और प्यार के पात्र बनाने वाली आत्माओं को, सदा वेस्ट को बेस्ट में परिवर्तन करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, देश-विदेश में दूर बैठे हुए भी समीप सम्मुख बैठी हुई आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से मुलाकात

ग्रुप नम्बर 1- अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्मायें हैं अनुभव करते हो? क्योंकि सर्वशक्तियाँ बाप का खज़ाना है और खज़ाना बच्चों का अधिकार है, बर्थ राइट है। तो बर्थ राइट को कार्य में लाना - यह तो बच्चों का कर्त्तव्य है। और खज़ाना होता ही किसलिए है? आपके पास स्थूल खज़ाना भी है, तो किसलिए है? खर्च करने के लिए, कि बैंक में रखने के लिए? बैंक में भी इसीलिए रखते हैं कि ऐसे समय पर कार्य में लगा सकें। काम में लगाने का ही लक्ष्य होता है ना। तो सर्वशक्तियाँ भी जन्म सिद्ध अधिकार हैं ना। जिस चीज पर अधिकार होता है तो उसको स्नेह के सम्बन्ध से, अधिकार से चलाते हैं। एक अधिकार होता है ऑर्डर करना और दूसरा होता है स्नेह का। अधिकार वाले को तो जैसे भी चलाओ वैसे वह चलेगा। सर्वशक्तियाँ अधिकार में होनी चाहिएं। ऐसे नहीं - चार है दो नहीं है, सात है एक नहीं है। अगर एक भी शक्ति कम है तो समय पर धोखा मिल जायेगा। सर्व शक्तियाँ अधिकार में होंगी तभी विजयी बन नम्बर वन में आ सकेंगे। तो चेक करो सर्व शक्तियाँ कहाँ तक अधिकार में चलती हैं। हर शक्ति समय पर काम में आती है या आधा सेकेण्ड के बाद कार्य में आती है। सेकेण्ड के बाद भी हुआ तो सेकेण्ड में फेल तो कहेंगे ना। अगर पेपर में फाइनल मार्क्स में दो मार्क भी कम है तो फेल कहेंगे ना। तो फेल वाला फुल तो नहीं हुआ ना? तो हर परिस्थिति में अधिकार से शक्ति से यूज़ करो, हर गुण को यूज़ करो। जिस परिस्थिति में धैर्यता चाहिए तो धैर्यता के गुण को यूज़ करो। ऐसा नहीं थोड़ा सा धैर्य कम हो गया। नहीं। अगर कोई दुश्मन वार करता है और एक सेकेण्ड भी कोई पीछे हो गया तो विजय किसकी हुई? इसीलिए ये दोनों चेकिंग करो। ऐसे नहीं सर्वशक्तियाँ तो हैं लेकिन समय पर यूज नहीं कर सकते। कोई बढ़िया चीज दे और उसको कार्य में लगाने नहीं आये तो उसके लिए वह बढ़िया चीज भी क्या होगी? काम की तो नहीं रही ना। तो सर्वशक्तियाँ यूज करने का बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। यदि बहुतकाल से कोई बच्चा आपकी आज्ञा पर नहीं चलता तो समय पर क्या करेगा? धोखा ही देगा ना। तो यह सर्वशक्तियाँ भी आपकी रचना है। रचना को बहुत काल से कार्य में लगाने का अभ्यास करो। हर परिस्थिति से अनुभवी तो हो गये ना। अनुभवी कभी दुबारा धोखा नहीं खाते। तो हर समय स्मृति से तीव्र गति से आगे बढ़ते चलो। सभी तपस्या की रेस में अच्छी तरह से चल रहे हो ना। सभी प्राइज लेंगे ना। सदा खुशी खुशी से सहज उड़ते चलो। मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाओ नहीं। कमज़ोरी मुश्किल बनाती है। सदा मुश्किल को सहज करते उड़ते रहो। अच्छा।

ग्रुप नं. 3- सभी अपने को स्वदर्शन चक्रधारी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? सिर्फ स्व का दर्शन किया तो सृष्टि चक्र का स्वत: ही हो जायेगा। आत्मा को जाना तो आत्मा के चक्र को सहज ही जान गये। वैसे तो 5000 वर्ष का विस्तार है। लेकिन आप सबके बुद्धि में विस्तार का सार आ गया। सार क्या है? कल और आज- कल क्या थे, आज क्या है और कल क्या बनेंगे। इसमें सारा चक्र आ गया ना। कल और आज का अन्तर देखो कितना बड़ा है! कल कहाँ थे और आज कहाँ हैं, रात और दिन का अन्तर है। तो जब विस्तार का सार आ गया तो सार को याद करना सहज होता है ना। कल और आज का अन्तर देखते कितनी खुशी होती है! बेहद की खुशी है? ऐसे नहीं आज थोड़ी खुशी कम हो गई, थोड़ा सा उदास हो गये। उदास कौन होता है? जो माया का दास बनता है। क्या करें, कैसे करें, ये क्वेश्चन आना माना उदास होना। जब भी क्यों का क्वेश्वन आता है - क्यों हुआ, क्यों किया तो इससे सिद्ध है कि चक्र का ज्ञान पूरा नहीं है। अगर ड्रामा के राज़ को जान जाये तो क्यों क्या का क्वेश्चन उठ नहीं सकता। जब स्वयं भी कल्याणकारी और समय भी कल्याणकारी है तो यह क्या.. का क्वेश्चन उठ सकता है? तो ड्रामा का ज्ञान और ड्रामा में भी समय का ज्ञान इसकी कमी है तो क्यों और क्या का क्वेश्चन उठता है। तो कभी उठता है कि क्या यह मेरा ही हिसाब है.. मेरा ही कड़ा हिसाब है दूसरे का नहीं... कितना भी कड़ा हो लेकिन योग की अग्नि के आगे कितना भी कड़ा हिसाब क्या है! कितना भी लोहा कड़ा हो लेकिन तेज आग के आगे मोम बन जाता है। कितनी भी कड़ी परीक्षा हो, हिसाब किताब हो, कड़ा बन्धन हो लेकिन योग अग्नि के आगे कोई बात कड़ी नहीं, सब सहज है। कई आत्मायें कहती हैं - मेरे ही शरीर का हिसाब है और किसका नहीं.. मेरे को ही ऐसा परिवार मिला है.. मेरे को ही ऐसा काम मिला है.. ऐसे साथी मिले हैं.. लेकिन जो हो रहा है वह बहुत अच्छा। यह कड़ा हिसाब शक्तिशाली बना देता है। सहन शक्ति को बढ़ा देता है। तेज आग के आगे कोई भी चीज परिवर्तन न हो - यह हो ही नहीं सकता। तो यह कभी नहीं कहना - कड़ा हिसाब है। कमज़ोरी ही सहज को मुश्किल बना देती है। ईश्वरीय शक्ति का बहुत बड़ा महत्व है। तो सदा स्व को देखो, स्वदर्शन चक्रधारी बनो। और बातों में जाना, औरों को देखना माना गिरना और बाप को देखना, बाप का सुनना अर्थात् उड़ना। स्वदर्शन चक्रधारी हो या परदर्शन चक्रधारी हो? यह प्रकृति भी पर है, स्व नहीं है। अगर प्रकृति की तरफ भी देखते हैं तो परदर्शनधारी हो गये। बॉडी कॉन्शसनेस होना माना परदर्शन और आत्म अभिमानी होना माना स्वदर्शन। परद-र्शन के चक्र में आधाकल्प भटकते रहे ना। संगमयुग है स्वदर्शन करने का युग। सदा स्व के तरफ देखने वाले सहज आगे बढ़ते हैं। अच्छा।

बापदादा ने सभी बच्चों को क्रिसमस दिन की इन एडवांस मुबारक दी

दुनिया वाले क्रिसमस का दिन मनाते हैं, उसको कहते हैं - बड़ा दिन। वह तो है हद के चक्कर के हिसाब से लेकिन आप सबका बड़ा युग संगमयुग चल रहा है। आयु के हिसाब से सबसे छोटा सा युग है लेकिन प्राप्तियों के हिसाब से सबसे बड़े से बड़ा युग संग-मयुग है। तो संगमयुग अर्थात् बड़े से बड़े युग की भी मुबारक हो। उन्हों को तो एक दिन के लिए क्रिसमस फादर आकर गिफ्ट देते हैं लेकिन आपको सदा के लिए गॉड फादर गोल्डन वर्ल्ड की गिफ्ट देते हैं। जो एक दिन नहीं, थोड़े समय के लिए गिफ्ट नहीं है लेकिन अनेक जन्मों की जन्म- जन्म की गिफ्ट है। तो कितना बड़ा दिन हो गया! वा बड़ा युग हो गया! बड़े से बड़े युग का हर दिन बड़ा दिन है। और मनाते कौन है? बड़े से बड़े बाप के बड़े से बड़े बच्चे, बड़े दिल से, बड़े युग का, बड़ा दिन सदा मनाते रहे हैं। वर्ष के हिसाब से तो एक दिन का उत्सव मनाने का दिन है। कल्प के हिसाब से आप सबके लिए बड़ा युग मनाने का भाग्य है। यह सबसे बड़े से बड़ा उत्सव है। हर दिन उत्सव का दिन है। तो बड़ा युग हो गया ना! क्रिसमस के दिन वो नाचेंगे-गायेंगे-खायेंगे। लेकिन उन्हों का नाचना, उन्हों का गाना, उन्हों का मनाना और आप सबका मनाना कितना रात-दिन का अन्तर है! इसलिए बड़े युग में बड़े दिन की मुबारक और वर्ष के हिसाब से क्रिसमस के दिन की मुबारक। सभी डबल विदेशी अपने-अपने प्रति क्रिसमस की वा नये वर्ष की मुबारक बाप द्वारा स्वीकार करें। बच्चे ग्रीटिंग्स के कॉर्ड भेजते हैं और बापदादा ग्रीटिंग्स कार्ड के रिटर्न में श्रेष्ठ भाग्य का रिकॉर्ड नूँध रहा है। इसलिए सभी कार्ड भेजने वालों को पद्मगुणा रिटर्न में मुबारक हो। सभी अपने- अपने नाम से याद-प्यार स्वीकार करें। भारत वाले और विदेश वाले दोनों को मुबारक।

दादी जी से - बाप की सृष्टि में भी आप हैं और दृष्टि में भी आप हैं। अपनी सखी जनक को यादप्यार भेजो। यही कहना कि शरीर और सेवा दोनों को सम्भालने का बैलेन्स रखे। अटेंशन रखना क्योंकि आगे भी समय नाजुक आयेगा। शरीर नाजुक होते जायेंगे और सेवा अधिक होती जायेगी। अभी शरीर से बहुत काम लेना है। अच्छा। ओम् शान्ति।